बीमा के एक करोड़ हड़पने के लिए भिखारी को जलाकर मार डाला का पारसौल का युवक गिरफ्तार अब होगी भाई+बाप की गिरफ्तारी
आरोपी अहमदाबाद में रहने लगा था, 17 साल बाद खुला मामलाजां
च के लिए अहमदाबाद पुलिस आरोपी को लेकर पारसौल पहुंची
दनकौर/ग्रेटर नोएडा।डॉ. सतीश शर्मा जाफ़रावादी
पारसौल गांव के एक युवक ने 90 लाख की बीमा राशि हड़पने के लिए हैरान कर देने वाली कहानी रची। खुद को मृत घोषित करने के लिए आगरा में विक्षिप्त भिखारी की हत्या कर दी। फिर अहमदाबाद में शिफ्ट हो गया। यहां उसने अपना नाम बदल लिया। इस करतूत की भनक उसकी पत्नी तक को नहीं लगी। 17 साल बाद उसे गिरफ्तार किया गया। शुक्रवार को अहमदाबाद पुलिस आरोपी को लेकर किसान इंटर कॉलेज पहुंची और उसका प्रामाणिक रिकार्ड खंगाला।
दनकौर पहुंची अहमदाबाद क्राइम ब्रांच
पुलिस ने बताया कि पारसौल गांव के मूल निवासी अनिल मलिक ने 3 जुलाई 2006 में आगरा के इलाके में एक विक्षिप्त भिखारी को खाना खिलाने का लालच देकर कार में बैठा लिया। खाने में नशे की गोलियां खाने में मिला दी। इससे वह बेहोश हो गया था। उसके बाद कार में आग लगा दी थी। कार में जले व्यक्ति की शिनाख्त परिजनों ने साजिश के तहत अनिल मलिक के रूप में की थी। पुलिस का दावा है कि अनिल ने इस कार्य में अपने पिता भाई और दोस्तों का भी साथ लिया। पुलिस ने बताया कि इसके बाद रिकार्ड में स्वयं को मृत दर्शाकर आरोपी ने अपने नाम बीमा पॉलिसी के 80 लाख रुपए और कार बीमा के 10 लाख रुपए हड़प लिए। दो बीमा कंपनियों को 90 लाख रुपए का चूना लगाकर अनिल मलिक गुजरात के अहमदाबाद में रह रहा था। घटना के 17 साल बाद पुलिस को चेकिंग के दौरान उसकी हरकतों पर शक हुआ और छानबीन में इस मामले का खुलासा हुआ।
गुजरात में कागजात भी बनवा लिए
अहमदाबाद पुलिस के अनुसार, अनिल मलिक ने अपना नाम चौधरी राजकुमार रख लिया था। राजकुमार के नाम से ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, आधार कार्ड और बैंक में खाता भी खोल लिया था। यहां ऑटोरिक्शा चालक के रूप में आजीविका शुरू की। अनिल के पिता विजयपाल सिंह और भाई गाजियाबाद में रहते हैं। पुलिस जांच में सामने आया कि अनिल का अपने परिजनों भाइयों और दोस्तों से बराबर संपर्क था। पुलिस के अनुसार इस षड्यंत्र में परिजनों का भी हाथ है। क्राइम ब्रांच अहमदाबाद पुलिस ने अनिल को तीन दिन पहले अहमदाबाद से गिरफ्तार किया था।
आठवीं तक पढ़ाई की थी पारसौल में
शुक्रवार को अहमदाबाद पुलिस अनिल मलिक को लेकर पारसौल के इंटर कॉलेज में पहुंची। अनिल ने 8वीं तक की पढ़ाई पारसौल के किसान इंटर कॉलेज में की थी। रिकॉर्ड में उसका नाम अनिल मलिक ही पाया गया। जबकि उसने अपना फर्जी नाम राजकुमार रख लिया था। अनिल मलिक की गिरफ्तारी के बाद पुलिस उन लोगों की गिरफ्तारी के प्रयास कर रही है जिन्होंने इस षड्यंत्र में उसका साथ दिया था। इंटर कॉलेज में रिकॉर्ड की पुष्टि करने और आवश्यक प्रमाण पत्र ले जाने के बाद अहमदाबाद पुलिस उसे अपने साथ ले गई। पुलिस उसे न्यायालय में हाजिर कर जेल भेजेगी।
सहयोगियों की गिरफ्तारी के प्रयास
विक्षिप्त की हत्या कर स्वयं को मृत दर्शाकर 90 लाख रूपए हड़पने वाले आरोपी का अहमदाबाद पुलिस ने पारसौल के इंटर कॉलेज में रिकॉर्ड खंगाला। किसान इंटर कॉलेज से आरोपी का प्रामाणिक रिकार्ड लेने के बाद अहमदाबाद क्राइम ब्रांच पुलिस ने बताया कि आरोपी ने वास्तविक नाम बदलकर दूसरे नाम से लाइसेंस, आधार कार्ड, बनवा रखे थे। क्राइम ब्रांच अब इस मामले में आरोपी के अन्य सहयोगियों की गिरफ्तारी के प्रयास कर रही है।
पैतृक गांव में किया था भिखारी का अंतिम संस्कार
पुलिस ने बताया कि मलिक परिवार ने दो सहयोगियों महिपाल गदरिया और राकेश खटिक के साथ आगरा टोल बूथ के पास एक भिखारी को देखा और उसे अपने टारगेट के लिए चुना। तीनों भिखारी को एक होटल में ले गए जहां उन्होंने उसे खाना खिलाया। बेहोश होने के बाद उसे कार की अगली सीट पर बैठा दिया। कार को बिजली के खंभे में धकेल दिया जिससे वाहन में आग लग गई। परिजनों ने शव की पहचान अनिल के रूप में की। उसका पैतृक गांव अंतिम संस्कार किया था।
2014 में की दूसरी शादी
अनिल को अपने पड़ोस की एक महिला से प्यार हो गया और 2014 में उन्होंने शादी कर ली। अपनी पत्नी से अपनी असली पहचान छिपाने के लिए न तो अनिल अपने पैतृक शहर गया और न ही उसने अपने परिवार के साथ कोई संपर्क बनाए रखा।
–
पहले भी पकड़ा गया दो बार
शिकायत पर अहमदाबाद पुलिस ने पहले भी दो बार अनिल मलिक को हिरासत में लिया था। लेकिन ट्रांसपोर्टर पिता की पहुंचे और जुगाड़ बाजी के चलते मामला रफा दफा हो गया था। तीसरी बार पकड़ में आने पर इस मामले का पर्दाफाश हुआ है।
एक करोड़ 5 लाख रुपए हड़पने के मामले में अनिल मलिक के पिता विजयपाल मालिक और भाई अभय मालिक भी आरोपी हैं। जालसाजी के मुकदमे में दोनों के नाम हैं। पिता विजयपाल मलिक गाजियाबाद में ट्रांसपोर्टर हैं। पहले वह डीटीसी में नौकरी करते थे। नौकरी से सेवानिवृति के बाद पिता ने गाजियाबाद में ट्रांसपोर्ट कंपनी बना ली और विजय ट्रस्ट नाम से एक संस्था भी चला रहे हैं।